सन्देश


प्रिय साथियों,



             मुझे यह जानकर परम हर्ष हुआ कि राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ आज के इस संचार क्रांति के युग में अपनी एक वेबसाईट लांच करने जा रहा है। आज के इस युग में सूचनाओं का त्वरित एवं समयबद्ध तरीके से अधतन होना अतिआवश्यक है साथ ही संगठन कार्यक्रमों एवं गतिविधियों की जानकारी आम ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को होना आवश्यक है। चूंकि ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ग्रामीण भारत के सर्वागीण विकास की एक मात्र धुरी एवं महत्वपूर्ण कड़ी है जो कि आम जनता को लाभान्वित कराता है। अतः इस वेबसाईट से ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संवर्ग लाभान्वित होगा उससे कई ज्यादा फायदा ग्रामीण जनता को मिलेगा।

            मुझे आशा है कि राजस्थान के आम ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) इस वेबसाईट का उपयोग कर लाभान्वित होंगे।

             साथ ही में संगठन हित में वेबसाईट निर्माण के निर्णय में संगठन के लिए पदाधिकारियों ने जो पहल की है जो कि निश्चित ही मील का पत्थर साबित होगी। साथ ही मैं पुनः इस आशय की बधाई देता हूं कि कर्मचारी जगत में वेबसाईट निर्माण की पहल करने में राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ अग्रणी रहा है जो कि अन्य कर्मचारी संगठनों का प्रेरणा सूत्र रहेगा एवं मैं इसकी सफलता की मनोकामना करता हूं।
धन्यवाद!

(सीताराम शर्मा)
प्रदेश संरक्षक
आर.जी.एस.एस., जयपुर।


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संगठन के गठन के बारे में:-




                           राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ अजमेर के नाम से पहली बार गठन किया जाकर सन् 1965-66 में राज. संस्था पंजिकरण अधिनियम के अधीन क्रमांक 28 पर जयपुर में पंजीकृत कराया गया था। प्रथम बार 1964-65 की गमियों में अजमेर, भीलवाड़ा जिले के ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) का प्रषिक्षण भीलवाड़ा के आरजिया फार्म कृषि अनुसंधान केन्द्र पर 2 दिवस का हुआ था। इसी में मैने यह विचार रखा, उन दिनों बिशनजी का राज. षिक्षक संघ सुर्खियों में होता था। उसी के अनुसार मैने अपने साथियों को सुझाया कि संघ बनाकर हम सामुहिक हितों की समस्याओं से त्राण पा सकते है और फिर रात को बैठक लेकर पहली कार्यकारिणी का गठन किया गया जो हमारे विधान के अंतिम पन्ने पर छपा है। श्री भंवरलाल झंवर अध्यक्ष बने और मुझें महामंत्री बनाया गया था।

             जयपुर बिशनजी शेखावत उन दिनों में रेजिडेंसी मिडि़ल स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। उनसे सम्पर्क कर शिक्षक संघ के विधान व प्रेरणा अनुसार विधिवत पंजीयन की कार्यवाही कराई और अनेक जिलों का मैने भरपुर दौरा किया व पहला अधिवेशन जयपुर सरकारी हॉस्टल के कान्फ्रेंस हॉल में आयोजित हुआ। जिसमें तत्कालिन आयुक्त आर.डी. माथुर व अन्य कई जनप्रतिनिधि व अधिकारी आए। दो दिन का अधिवेशन सम्पन्न हुआ, उन दिनों हमारे संघ का मुख्यालय अजमेर था। मंडी गेट पर एल.आई.सी. युनियन के कार्यालय में चलता था। इस अधिवेशन में कई जिलों के साथी जुड़ गए व कार्यक्षेत्र विस्तृत होने लगा।

             प्रथम अध्यक्ष, महामंत्री व अन्य पदाधिकारियों का नाम अपने विधान में छपा हुआ है कृपया वहां से विवरण ले लेवें।

             इसके प्रश्चात दूसरा अधिवेशन उदयपुर म्यूनिसिपल टाउन होल में आयोजित हुआ। एक श्री गांधी नाम के बडे ही उत्साही साथी की अगुवाई में उदयपुर अधिवेशन बहुत ही सफल आयोजित हुआ। इसमें श्रृद्वेय सुखाडि़या साहब, मथुरादास जी माथुर, जगन्नाथ पहाडि़या, हीरालाल देवपुरा, परशराम मदेरणा, जसराज जयपाल आदि मंत्रीगण आए। इसमें हमारी मांगों पर गंभीरता से विचार प्रारम्भ किया।

             साथियों की उपस्थिति भी भरपुर हुई तत्कालिन जिला प्रमुख श्री रामेश्वर जी ने अपने संघ का आयोजन कराने में पूरी दिलचस्पी दिखाई। सुखाडि़या जी का लाने का श्रेय इन्ही को गया था।

             इसके बाद जोधपुर की युनिवर्सिटी के कान्फ्रेंस हॉल में अधिवेशन हुआ तब मुझें सुखाडि़या जी ने पत्र देकर दिल्ली जगजीवनराम बाबू को निमंत्रण देने भेजा। मैं तब जयपुर झोटवाड़ा आ गया था, मोटरसाईकिल से दिल्ली गया और जगजीवनराम जी तक रक्षामंत्री भी थे, आना स्वीकार किया अधिवेशन के लिये आये व सीमा क्षेत्र का दौरा कर जोधपुर सर्किट हाउस में ठहराये गयें।

             यह अधिवेशन मानसिंह जी राठौड़ मंडोर पं.स. के भरपुर प्रयासों से बहुत ही अच्छा आयोजित हुआ। इसमें भी सुखाडि़या साहब व राज्य के कई मंत्री व उच्च राजकीय अधिकारी आए।

             सलेक्शन स्केल, पदौन्नती, सीनियरटी लिस्ट, हार्ड ड्यूटी अलाउन्स बढ़ाने, ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) नाम बदलकर ग्रामसाथी करने आदि कई मांगों पर विचार हुआ। इसके प्रश्चात अधिवेशन का आपकों पूरा ध्यान होगा ही जोधपुर में अपने अध्यक्ष किशनसिंह जी बने, जगदीश सिंह जी हाडा आगे जाकर अध्यक्ष बने। कोटा में भी अधिवेशन हुआ। जयपुर वगैरह फिर होते गए। महामंत्रियों में मेरे बाद मूलचन्द ठाडा, चंद्रशेखर स्वयं बनते गए।

             सन् 1981 में मैने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली। उससे पहले संघ के कार्य में पर्याप्त समय एवं मार्गदर्षन दिया गया था।

             प्रारम्भिक काल मे राज्य में 232 पंचायत समितियों में 2320 पद थे। फिर कृषि विभाग से 900 फील्ड़ मैन सरप्लस होकर आयें जिन्हें ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) पद पर लिया गया। उन दिनों संघ ने ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) का कार्यक्षेत्र छोटा करने व संख्या बढ़ाने का तथा पंचायतों में सचिव कार्य हाथ में लेने का भरपुर प्रयास किया। पंचायतों में जाने का मेरा विचार था ताकि ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को ग्रामीण क्षेत्र में उपयोगिता सम्भावित रूप से पहचाना जा सकें।

             केन्द्र में प्रारम्भिक कार्यकाल में एस.के. डे. विकास मंत्री थे। राज्य में दामोदर लाल जी व्यास के प्रश्चात परशराम मदेरणा, ........... सिंह जी, अपने विभाग के मंत्री रहें। कोटा अधिवेशन में वे कोटा से होते हुए नही आए, जिनका निन्दा प्रस्ताव पारित किया, तो मेरा स्थानान्तरण पहले बांसवाड़ा फिर जोधपुर किया। पहली बार हाईकोर्ट से ट्रान्सफर पर स्टे मिला था। मुख्यमंत्री में सुखाडि़या जी के बाद बरकातुल्ला जी, हरिदेव जी जोशी, हीरालाल देवपुरा, शिवचरण माथुर बने थे। सुखाडि़या जी राज्यपाल कर्नाटक बना दिये गये। मेरा सबसे अधिक साथ रामकिशन पंवार (कोषाध्यक्ष) लम्बे समय तक रहे। जगदीश सिंह जी हाडा, शोरम बिहारी जी जयपुर में आप भंवरलाल शर्मा, रामेष्वर जी कोटपुतली, मूलजी ठाडा, चंद्रशेखर जी वगैरह के साथी रहे पर मेरी स्मृति में नही आ रहे है।

             मेरा पदस्थापन स्थान पं.स. खमनोर (उदयपुर) में 27.04.1956 था। इससे पहले डेढ़ वर्ष की ट्रेनिंग कोटा छत्रपुरा में ली गई थी। खमनोर से मैं भिनाय सन् 1960 में आ गया और संगठन के साथ ही मदेरणाजी ने मुझे झोटवाड़ा लगा दिया फिर मैं वापस भिनाय आ गया तथा सन् 1981 में स्वैच्छित रिटायरमेंट ले लिया। मेरे को तो सलेक्षन स्केल भी नही मिल सकी।

             मेरे द्वारा अधिकतर कामों में संघ का गठन, विस्तार, राज्यभर का दौरा, महासंघ का संस्थापन, राज्य का पहला कर्मचारी जत्था जयपुर के सेंन्ट्रल जेल में जाना व राणावत वेतन आयोग से ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संवर्ग को दोनों पे-स्केल, सचिवालय कर्मचारियों के समकक्ष कराने में रामसिंह जी का भरपुर साथ रहें यानी साधारण कनिष्ठ लिपिक से उपर व साधारण वरिष्ठ लिपिक से उपर की पे-स्केल स्वीकृत कराना, सिनियरिटी लिस्ट बनवाना, पदौन्नती की शुरूआत, पंचायत सचिव पद प्राप्त कराना, मनमाने स्थानान्तरण पर पाबन्दी आदि अनेक थे। महासंघ के गठन में अपने संघ ने महत्ती भूमिका निभाई। महासंघ का संगठन मंत्री निरन्तर रहकर राज्यभर में महासंघ के गठन व कार्यक्रमों में प्रमुखता से भागदौड की और महासंघ के कार्यालय को संभाला। राज्यभर के कर्मचारियों के निजी मामले मेरे पास ही थे। प्रतिदिन उनसे सम्बन्धित मामलें विभागों में जाकर निपटाता था।

             लखनउ में उत्तर प्रदेश ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ के प्रथम अधिवेशन में विशिष्ठ अतिथि के रूप में लखनउ के रामकिशन जी पंवार गये। नारायणदा तिवारी जी मुख्यमंत्री मुख्य अतिथि थे। अखिल भारतीय संयुक्त कर्मचारी महासंघ की बैठकों में भी पषुपतिनाथ शुक्ल के नैतृत्व में भाग लिया। तब तक कई एक से एक योग्य व संजिदा साथी संघ से जुड़ गये और काम का राज्य भर में विस्तार हो गया।

             सन् 1975-76 के बाद के कार्यकाल में अब तक आप ने महत्ती भूमिका निभाई। संघ में नये प्राण फूंके पर्याप्त समय दिया और संघ को नई उंचाईयों तक आपने व आपकी टीम ने पहूंचाया। मुझें पूर्णतः सन्तोष है कि संघ निष्प्राण नही रहा, प्राणवान उर्जा आप लोगों ने दी और नई परिस्थितियों की समय के साथ आपने ताल कदम मिलाकर प्रयास किया। मेरी सम्पूर्ण शुभकामनाएं आप सभी वर्तमान पदाधिकारियों सहित स्वीकार करावें। मैं सदैव आप लोगों को अपना हर संभव सहयोग देने को तत्पर था, हूँ व रहूंगा।

             राज्यभर के साथियों को पूरी सावधानी और कार्य के प्रति निष्ठा के साथ अपनी सेवाएं देते रहकर कर्मचारी जगत मे अपना उच्च सम्मानजनक बनाना चाहिये। स्वर्ण अवसर मिला है उसका भरपुर लाभ अपने कार्यक्षेत्र में प्रदान करते रहे।

            शेष शुभ, सदैव आपके साथ।
आपका अपना

फतेहचन्द महात्मा
संयोजक संस्था सेवा संघ
देवलियाकलां (भिनाय) अजमेर (राज.)


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श्री गणेशाय नमः     ओउम् नमः शिवाय as      श्री सरस्वत्यै नमः



संख्या 125     अश्विन शुक्ला (शरद) पूर्णिमा मंगलवार सम्वत् 2068 तदनुसार 21 अक्टुबर 2011

प्रतिष्ठा में,
श्रीयुत सीताराम जी शर्मा,
संरक्षक, राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ,
द्वारा जयपुर होटल, चैड़ा रास्ता
जयपुर (राजस्थान) 302003

a             प्रभु (कृपा) से आप सपरिवार स्वस्थ, प्रसन्न एवं सेवा साधनारत है। आपका पत्र मिला। सोचा आपने स्मरण किया तो एक ही परमात्मा के अंश होने से हम भिन्न तो है नही, काया से अवश्य भिन्न है पर तात्विक दृष्टि से समान है ही। काया रूपी मोह के कारण भिन्न से है यही मायापति की लीला (संसार) है, और हम प्रदत्त अभिनय कर रहे है।
             राजस्थान के राज्य कर्मचारियों को नियमानुसार मिलने वाले (राजस्थान असैनिक सेवायें चिकित्सा परामर्श नियम 1970 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 309 के अधीन के अनुसार दिये जाने वाले लाभ से अंशदायी सेवारत तथा सेवानिवृत कर्मचारियों को लाभांवित कराने में उपस्थित व्यवधानों का राज्य शासन से समाधान कराने हेतु राजस्थान उच्च न्यायालय में (जनहित) याचिका दायर करने में न्यूनतम पारिश्रमिक मानधन राशी से प्रक्रिया पूर्ति कर, प्रकरण (बाद) अकाव्य आधार पर प्रस्तुत कर सफलता प्रदान करा सकें। इसके सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी हेतु निम्नलिखित अभिलेख संलग्न है:-

1. श्रीमान् मुख्यमंत्री जी, चिकित्सा मंत्री जी तथा विधि मंत्री जी राजस्थान सरकार को प्रस्तुत प्रार्थना पत्र (द्वारा श्रीमान् कलक्टर महोदय जी चित्तोडगढ ) की 1 से 4 पृष्ठ की प्रतिलिपि।

2. चंद्रशेखर द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रेषित की जा रही दो पृष्ठ 5 से 6 की जानकारी का पत्र।

3. चंद्रशेखर द्वारा प्रस्तुत प्रकरण संख्या 508 दिनांक 30 अगस्त 2010 के विपक्षी अधिकारी वर्ग को भेजे वाद पत्र के बाद आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा विभाग के शासन उप सचिव की अध्यक्षता में 11 नवम्बर 2010 को आयोजित (सात उच्चाधिकारियों की) बैठक में लिये गये निर्णय की दो पृष्ठीय प्रति तथा साथ में संलग्न परिषिष्ठ III, परिषिष्ठ I औषधियों (1 से 620 पृष्ठ 7 से 21) की केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति योग्य मान्य की सूची तथा परिषिष्ठ 2 वे औषधियां जो केन्द्रीय चिकित्सा परिचर्या नियम 1944 में (46 औषधियां) सम्मिलित नही है, को भी यथावत पुनर्भरण योग्य रखने का निर्णय की सूची

4. चंद्रशेखर द्वारा जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच चित्तोडगढ द्वारा निर्णित प्रकरण संख्या 508/2010 के निर्णय दिनांक 07 जुलाई 2011 के निर्णय की तीन पृष्ठीय (13 से 15) प्रति।


             राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ के लिये बनाई जा रही ‘‘वेबसाईट’’ के लिये स्फुट विचार (तीन पृष्ठ) आठ बिन्दु तथा लगभग 40 वर्ष पूर्व विकास एवं प्रसार सेवाओं को देश में एकरूपता की दृष्टि से बिना किसी हस्तक्षेप के सुचारू रूप से संचालन (संचालित) करने के लिए ‘‘अखिल भारतीय विकास/प्रसार सेवाओं के सृजन के लिये ‘‘अखिल भारतीय ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) एवं ग्रामसेविका संघ’’ का प्रतिनिधि मण्ड़ल तत्कालिन सामुदायिक योजना प्रशाशक (सीपीए) श्रीमान् सुरेन्द्र कुमार जी दे से मिला तथा दो दिन तक विचार विमर्श किया। उस समय के दोनों दिनों के (दो) समूह फोटों साथ में संलग्न है। व्यक्तिगत जानकारी


1. संवत् 2058 (सन् 2001) से बिना किसी दिखावें के मानसिक संकल्प द्वारा सन्यास आश्रम के नियमों के पालन का अभ्यास कर रहा हूँ ।

2. स्वयं सेवक हूँ । अतः अपना हर काम शारीरिक क्षमता रहने तक स्वयं सम्पन्न करने का भी प्रयोग कर रहा हूँ । अतः ‘‘स्वपाकु’’ भी हूँ अपने लियें।

3. संवत् 2061 (सन् 2004) से राज्य प्रषासन की जानकारी में देहदान का संकल्प किया है।

4. गृहस्थाश्रम के उत्तरदायित्वो से (हर सम्भव प्रयासों के क्रमगत) मुक्त होता जा रहा हूँ । देश समाज के (सामूहिक) कार्यो की रूचि बढ़ाने के साथ सम्पन्न एवं सहयोग का अभिलाषी हूँ ।

             कृपालु ब्रहमाण्ड़ सृष्टिकर्ता परमपिता भगवान ‘‘षिव’’ की कृपा, प्रेरणा, सम्बल से हर प्रकार से आनन्द है और रहेगा, प्राणी (मानव) का जितना गहन समर्पण जगतपिता के श्री चरणों में होगा उतना ही आनन्दानुभव स्वयंस्फूर्त होता रहेगा, यही सच्चिदानन्द की अहेतु व्यवस्था है।

उन्हीं के चरणों में नत मस्तक अकिंचन
चन्द्रशेखर




स्फुट विचार


राष्ट्र:- राष्ट्र एक चैतन्य सास्कृतिक ईकाई है उसकी आत्मा है ‘‘संस्कृति’’

पृथ्वी के किसी भाग (खण्ड़ या टुकड़े) को राष्ट्र तक ही कहां जाता है जब:-
1. प्राकृतिक सीमाएं हो। 2. निवासी उस (क्षेत्र) को माता मानते हो, उसकी उन्नति से प्रसन्न एवं अवनती से दुखी होते हो 3. इतिहास जीवन लक्ष्य एक (समान) हो 4. संस्कृति, श्रृद्धा केन्द्र, आदर्ष, धर्म, मान्यताएं, परम्पराएं, रीति रिवाज एक से हो 5. सुख, दुख, शत्रु, मित्र, आषा, आकांक्षा आदि भावों से सम्पन्न समाज ही राष्ट्र है।

2. भारत एक राष्ट्र था, है तथा रहेगा,। विगत एवं सहस्त्राब्दी में विदेशी आक्रान्ताओं के कारण व्यवधान उपस्थित हुए। स्वतन्त्रता संग्राम के माध्यम से उसे यथावत करने का प्रयास, महात्मा तिलक एवं गांधी जी, सरदार पटेल एवं एस.के. डे के नैतृत्व में वर्ष 1947 से राष्ट्र तथा 1952 से एन.ई.एस., राष्ट्रीय प्रसार (विस्तार) सेवाओं का शुभारम्भ हुआ।

राष्ट्रीय विस्तार सेवायें

3. लगभग एक लाख जनसंख्याओं पर एक राष्ट्रीय विस्तार संघ का गठन किया गया। एक विकास अधिकारी, दस ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता तथा इनके सहयोग (पृष्ठबल, मार्गदर्षन) के लिए क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार कृषि, शिक्षा , जन स्वास्थ्य, चिकित्सा, गृह उद्योग, सहकारिता, श्रृद्धा जागरण, सुरक्षा, ग्राम विकास, लोककला, समाज शिक्षा , आर्थिक विकास, पशुपालन , विपणन आदि के लिए विशेषज्ञ (प्रसार अधिकारी) नियुक्त किये गये।

विस्तार कार्यकर्ता (ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ))

4. विस्तार कार्यो के लिए ग्राम (पंचायत) स्तर पर एक ऐसे कार्यकर्ता की आवश्यकता अनुभव की गई जो ग्रामीण क्षेत्र में रहे तथा विकास (प्रसार-विस्तार) सम्बन्धी (उपरोक्त) समस्त गतिविधियों का जानकार श्रंबा व िंसस उंेजमत व िदवदम (बहुधन्धी) अच्छा शिक्षित हो, केन्द्र (सरकार) की विकास सम्बन्धी योजनाओं को वास्तविक रूप में समझकर कार्यान्वित करा सकने की क्षमता- योग्यता वाला हो। व्यक्तिगत जनसम्पर्क द्वारा जन सहयोग जुटाने की सामथ्र्य रखता हो, ईमानदार व कार्यकुशल हों।

ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) की प्राप्ति

5. प्रवेशिका या उच्च माध्यमिक (कम से कम) उत्तीर्ण तथा दो वर्षीय एकबद्ध (बहुआयामी) प्रसार प्रशिक्षण प्राप्त हो। क्षेत्र (गांवों) निरन्तर प्रवास (भ्रमण) करने की शारीरिक योग्यताधारी (बाईसिकिल चलाने वाला यानी) हरफनमौला व्यक्ति होना चाहिए।

जन (लोक) तांत्रिक व्यवस्था की अवधारणा

6. आज से लगभग साढे अठारह लाख वर्ष पूर्व सुर्य (रघु) वंषी मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम ने देवभूमि आर्यावृत (भारतवर्ष) में सुशाशन प्रारम्भ किया था जिसकों तत्कालिन विश्व ने ‘‘रामराज्य’’ के नाम से अंगीकार किया। लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व आर्यावृत के तत्कालिन सम्राट ‘‘भरत’’ ने (अपने सात औरस पुत्र होते हुए भी योग्यता तथा क्षमता के आधार पर आमजन में से अनुभवी योग्य व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी चुनकर) देष में ‘‘जनतन्त्र’’ व्यवस्था का शुभ सुत्रपात किया था। उसी परम्परा का अनुसरण करते हुए (खण्ड़) भारत की संविधान निर्मात्री सभा ने अज्ञातशत्रु देशरत्न श्री डा. राजेन्द्र प्रसार जी के नैतृत्व में सम्वत् 2007 (सन् 1950) में ‘‘जनतन्त्र’’ के नाम से तथा राजस्थान में श्री मोहनलाल जी सुखाडि़या ने सम्वत् 2016 (सन् 1959) में ‘‘लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण’’ के नाम से शासन व्यवस्था प्रारम्भ की, जो आदिनांक प्रचलन में हे।

राजस्थान में सामुदायिक एवं ग्रामीण विकास

7. उपलब्ध कार्यकर्ताओं, साधनों द्वारा 1953 में राजस्थान के कुछ चुनिन्दा राष्ट्रीय विस्तार सेवा खण्ड़ों के माध्यम से विकास (विस्तार) कार्य प्रारम्भ हुए। कार्यकर्ताओं का भी चयन किया गया। चयन प्रक्रिया के साथ कुछ राष्ट्र भक्त युवक भी अपना व्यवसाय छोड़कर देश के उत्थान/विकास में सम्मिलित हुए। ऐसे ही युवकों ने लगभग तीन साल में ही अपने भविष्य का अनुमान लगाया। राष्ट्रस्तरीय इस योजना को सफलीभूत बनाने के लिए राष्ट्र स्तरीय कार्यकर्ताओं का संगठन एवं क्षेत्र में कार्यरत कार्यकर्ताओं के अनुभव एवं उनका परस्पर आदान-प्रदान आवश्यक मानकर विकास सेवा के कार्य युद्धस्तर पर प्रारम्भ हुए। परिणाम अपेक्षा से अधिक तथा उत्साहवर्धन रहें। प्रषिक्षित ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को (ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) क्षेत्र में विभिन्न विभागों के सेवारत समस्त कर्मचारियों की) परामर्षदात्री समिति का समन्वयक नियुक्त किया तथा कर्मचारियों में वरिष्ठ मान लिया गया। आसपुर (डूंगरपुर) राजस्थान का जनजाति बहुल पहाड़ी क्षेत्र है। यहां प्रशिक्षित ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को नियुक्त किया गया। विकास (विस्तार) सेवाओं के साथ इन्ही (ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक )) बन्धुओं ने सर्वप्रथम अखिल भारतीय ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ का 5 अक्टुबर 1956 को शुभारम्भ किया। देश के अन्य प्रदेशो से सम्पर्क किया। राजस्थान के राष्ट्रीय सेवा खण्ड़ों में ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ की शाखाएं, उपशाखाये प्रारम्भ की गई। ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ की ओर से ‘‘ गांव सेवा’’ मासिक पत्र प्रारम्भ किया गया। राजस्थान में 10 जुन 1965 को ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ का पंजीकरण तथा इसके बाद विभागीय मान्यता भी मिली। राजस्थान में (1) श्री जगदीष सिंह हाडा, कोटा, (2) श्री फतेहचन्द महात्मा, अजमेर (3) श्री रामकिशन पंवार, मेड़ता (4) श्री सौरभबिहारी भारद्वाज, बुन्दी, (5) श्री मुरारीलाल सक्सेना, कामां (6) श्री सीताराम शर्मा, कोटपुतली, (7) श्री लक्ष्मणलाल महता, श्रीगंगानगर (8) श्री गौतमलाल महता, बांसवाड़ा, (9) श्री चम्पालाल शर्मा, भीलवाड़ा (10) श्री मूलचन्द ठाडा, पाली आदि कुई बन्धुओं का विशेष योगदान रहा। देश में राजनैतिक परिस्थितियों के परिवर्तन से क्षेत्र के विकास (प्रसार) कार्यो में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अनुभव किये जा रहे व्यवधान तथा उनके समाधान के लिए अखिल भारतीय ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ के प्रतिनिधि मण्ड़ल ने श्रीमान् सुरेन्द्र कुमार जी डे (श्री एस.के. डे), सामुदायिक एवं ग्रामीण विकास मंत्री भारत सरकार नई दिल्ली से लगातार दो दिन विचार विमर्श किया तथा क्षेत्रीय परिस्थितियों एवं वातावरण से अवगत कराया। भारतीय विकास सेवाओं के सृजन की दृढता से मांग प्रस्तुत की गई। राजस्थान में भी विकास सेवाओं के सृजन का प्रयास किया गया। अथम प्रयासों से विकास खण्ड़ों (पंचायत समितियों) में सेवारत समस्त प्रसार अधिकारियों के (राजस्थान में स्वीकृत) कुल पदों के 10 प्रतिशत पद प्रषिक्षित/उच्च प्रशिक्षण प्राप्त ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) से भरे जाने की नीति निर्धारित की गई। एक सौ एकड़ से अधिक क्षेत्र के राजकीय कृषि फार्म पर भी ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) (बतौर प्रबन्धक) नियुक्त किये गये। राजनैतिक परिवर्तन से देश के लिए तन मन धन अर्पण करने वाले उच्च स्तरीय जनप्रतिनिधि सेवानिवृत होने लगे। उनके स्थान पर चुने/मनोनित किये गये प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों में कुछ, अति महात्वाकांक्षी, पदलोलुप, सुखोपभागी, स्वार्थी, चापलुस, अपराधी किस्म के व्यक्ति भी (येन, केन, प्रकारेण- धनबल, भुजबल आदि से) प्रवेश पा गये तथा उन्होंने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अपने चहेतों/समर्थकों की प्रशाशन एवं अन्य महत्व के पदों पर नियुक्ति का प्रसास शुरू कर दिया। शिक्षित योग्य, अनुभवी जनप्रतिनिधियों/जनसेवकों के स्थान पर (राष्ट्र हितों की उपेक्षा नजरअन्दाज करते हुए) अल्प अनुभवी, नवसिखुआ व्यक्तियों को नियुक्त करा अपने समर्थकों की संख्यावर्धन कार्य किया। उच्चस्तर से यहीं प्रक्रिया ग्राम स्तर तक पहुँच गयी।

लोक (जन/प्रजा) तांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक )

राजस्थान में 2 अक्टुबर 1959 से (देश में सर्वप्रथम) लोकतांत्रिक (त्रिस्तरीय) शासन व्यवस्था प्रारम्भ की गई। योजनानुसार (1) पंचायत, (2) पंचायत समिति (3) जिला परिषद् का गठन हो, उनके सफल संचालन के लिए योग्य, अनुभवी सचिव नियुक्त हो। उस समय राजस्थान में लगभग 7000 पंचायतें 158 तहसीलें एवं 26 जिलें थे। योजना अनुसार जिला परिषद् में जिलाधीष (कलक्टर), पंचायत समिति (तहसील) में उपखण्ड़ अधिकारी तथा पंचायत में प्रषिक्षित ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को सचिव पद पर नियुक्त किया जाना प्रस्तावित था। प्रयोग के तौर पर बड़ी पंचायतों में ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को सचिव लगाया जाना प्रारम्भ हुआ। ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) वर्ग की नियुक्ति प्रभावषाली सरपंचवर्ग को अपनी स्वतन्त्र कार्यषैली में व्यवधान महसुस हुई हो, अतः योजना चली नही। राज्य शासन ने नियुक्ति अनिवार्य कर दी। ऐसी स्थिति में ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) सचिव को तीन पंचायतों के सचिव का कार्यभार दिया गया। एस.डी.ओ. को दो साल पंचायत समिति में विकास अधिकारी पर पर कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया। जिला परिषद् में कलक्टर आई.ए.एस. के स्थान पर सिनियर आर.ए.एस. को सचिव पद पर लगाया गया। ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) के पद के लिये निर्धारित योग्यता एवं प्रषिक्षण के मानदण्ड़ शिथिल करते हुए पंचायतों में तत्समय कार्यरत सचिवों किसी भी विभाग के अधि (घोषित) शेष कर्मचारियों को ग्राम विकास अधिकारी ( ग्राम विकास अधिकारी ( ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ) ) सचिव के स्थान पर नियुक्त किये गए। सरपंचों को अपनी पसंद के सचिव मिले और ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) सचिव को मिली परेशानी , किंकर्तव्य विमूढ की स्थिति, अस्थिरता एवं निष्क्रियता का पदक। ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) तथा ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) सचिव योग्यताधारी विकास के कार्यकर्ता तो अब रहे नही। वर्तमान पंचायतों को लाखों/करोड़ों का अर्थ संकल्प (बजट) आवंटित किया जा रहा है। उस स्तर के अधिकारी व कर्मचारी उपयुक्त स्तर तक शिक्षित/प्रशिक्षित नही। प्रशाश्कीय पत्र एवं नियम प्रायः अंग्रेजी (भाषा व लिपि) में होते है जो उनकी समझ से परें होते है। निक्षेपण की प्रक्रिया से अनभिज्ञ होने के कारण दुरूपयोग के दोषी बन जाते है। कार्यालय का उत्तरदायित्व सचिव का होता है। अतः जनप्रतिनिधि (सरपंच) सुरक्षित हो जाता है, सचिव आरोपित मान लिया जाता है। आज का सचिव, पंचायत का सेकेट्री सचिव है, ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) विलेज लेवल वर्कर नही है। अनियमितताएं, देश में हर स्थान पर, हर विभाग में, सर्वोच्च स्तर पर होने के समाचार (प्रचार प्रसार के माध्यम) मिडि़या द्वारा प्रकाषित होते रहे है। और देश के सर्वोच्च नैतृत्व की इच्छा शक्ति जब तक प्रबल नही होगी, देश की सेवाभावी गैर सरकारी संस्थाओं/संगठनों द्वारा राष्ट्रीय भावों का नागरिकों में जागरण तथा आम नागरिकों का जनप्रतिनिधियों पर अंकुष/नियंत्रण (अधिकार लेना या देना, मनोनीत करना या वापस बुलाना) नही होने तक सर्वोच्च नैतृत्व भी सचेष्ठ नही होगा। राष्ट्रीय भावों से ओतप्रोत/सम्पन्न/संघटित, सक्रिय नैतृत्व, मानव जनित कृत्रिम पार्थिव व्यवधान, व्यवस्थायें, उपद्रव-संघर्ष आदि का समाधान करने का सक्षम होता है। वर्तमान परिस्थितियों का उद्भव संवत् 2020 (सन् 1963) के आसपास शुरू हो गया था। 2048 के आसपास करीब 300 विदेषी संस्थाओं को देश में निर्माण एवं संभरण (पूर्ति विक्रय) का अधिकार देने से उत्पन्न वातावरण ने हर क्षेत्र में भिन्न भिन्न प्रकार से बद से बदतर बदतम बना दिया। कुछ हजार लोगों की सम्पन्नता के लिए करोड़ों को विपन्न बना दिया। अपनी सुख सुविधाओं एवं वर्चस्व बनाए रखने के लिए आम नागरिकों को हर क्षेत्र में पराश्रित बना दिया। स्वतन्त्र देष के नागरिकों को अप्रत्यक्ष रूप से पराश्रित रहकर जीने का अभ्यास शुरू करा दिया। पुरूषार्थ ही जीवन है, इसे विस्मृत कर दिया।

उपसंहार

यथा राजा (शाशक) तथा प्रजा की वर्तमान स्थिति से परमपिता हम सबकों उबारे। भारत में ब्वउवितज सवअपदह बंकतमे ंदक ेजंजने बवदेबपवने समंकमते की पनपती हुई स्थिति को परमपिता समाप्त करें। सभी मानव देवतुल्य मानव सा आचरण करें। परम पिता हम सबकों सद्बुद्धि प्रदान करें।

ओउम् शान्ति।


चन्द्रशेखर