राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ का इतिहास

साथियों,

      हमें हमारी संगठन शक्ति को बनाये रखने के लिए संगठित रहना, जहां जरूरी है, वहीं पर हमें, संगठन की आवश्यकता, के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए, यह जानना आवश्यक है कि, हमारे राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संगठन का कैसे, किन परिस्थितियों में, किन कारणों को ध्यान में रखकर - किन-किन महान विचारक, जुझारू एवं समर्पित भावनाओं के साथ संगठन की आवश्यकता महसूस कर गठित किया, के इतिहास की जानकारी भी वर्तमान सदस्य साथियों को होना आवश्यक है ताकि वर्तमान सदस्यगण अपनी मांगो/समस्याओं का निराकरण - संगठन शक्ति के द्वारा निराकरण करा सके।

      अतः इसी दृष्टि से मैं, अपनी वर्तमान स्मरणशक्तिनुसार, संक्षेप में संगठन के गठन के प्रारम्भ से वर्तमान की संघर्ष यात्राओं के साथ आपको अवगत कराना चाहता हूँ ।

      दोस्तो, भारत के आजाद/स्वतन्त्र होने के साथ ही, हमारे देश के महान नेताओं, ने देश की जर्जर आर्थिक हालात आदि को दृष्टिगत रखते हुए ही - भारत को विश्वस्तर पर अन्य देशों के समान दर्जा दिलाने हेतु देश के आमनागरिकों की सामाजिक, आर्थिक (राजनैतिक) स्तर को हमारे देश के राष्ट्रपति महात्मा गांधी जी के ‘‘स्वराज’’ की कल्पना को साकार करने हेतु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प0 जवाहर लाल जी के नेतृत्व में ‘‘समाजवादी समाज’’ की नीतियों को प्राथमिकता देते हुए ही ग्रामीण भारत के सर्वागीण विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि, औद्योगिक, शिक्षा, चिकित्सा एवं प्रौद्योगिकता को प्राथमिकता प्रदान करते हुए ‘‘पंचायतीराज संस्थाओं’’ के माध्यम से हमारे ग्रामों के विकास के कार्यक्रमों को प्राथमिकता प्रदान की गई। जिससे सर्वप्रथम सामुदायिक विकास खण्डो के माध्यम से, जिला बोर्ड संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण जनता के प्रतिनिधियों की भागीदारी तय की गयी।
तभी एस.के.डे. जो कि भारत के सामुदायिक विकास की अवधारणा को बढाने हेतु ग्रामस्तर पर विकास के लिए सरकारी प्रतिनिधियों के रूप में ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) पद को सृजित किया। यह कहानी वर्ष 1952 से शुरू हुई। तब ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) का नाम ग्राम के सर्वागिण विकास के लिए सामने आया। राजस्थान में सर्वप्रथम 10 ग्रामसवेक पद सृजित किये गये तब से लेकर आज तक यह पद बना हुआ है।


      दोस्तो, 1952 से 2.10.1959 तक ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को 80 प्रतिशत कृषि उत्पादन हेतु कार्य किया और 20 प्रतिशत राज्य के सभी विभागों के कार्य ग्रामस्तर तक पूरे किये। क्योंकि उस समय ग्राम स्तर पर सरकारी कर्मचारी जो ग्रामीणों के सर्वागिण विकास हेतु उनका मार्गदर्शक, प्ररेक, सहभागी के रूप में कार्य करा सके। कर सके, नहीं था। उस समय ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ने कृषि उत्पादन कार्यक्रम को सफल बनाया। कृषि क्रान्ति जिसे हरित क्रान्ति कहा गया, दूग्ध क्रान्ति सहकारिता, आदि योजनाओं को सफल किया।

       1952 से 1959 तक एक ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) को अपने परिवार, स्वयं के स्वास्थ्य, सामाजिक कार्यो के लिए (सरकार ने जनप्रतिनिधियों ने काम लेने की मशीन) सोचने का समय ही प्रदान नहीं किया। और न ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ने अपने उत्थान हेतु सोचा। ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ने तो देश के सर्वागिण विकास में अपने आपको 24 घन्टे सरकारी सेवक मानकर समर्पित कर दिया है। मगर इस पर भी प्रदेश सरकार ने ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संवर्ग की महत्त्व एवं उनके आर्थिक उत्थान के बजाय शोषण, दमन की नीति से काम लेना शुरू कर दिया। तब आप ही सोचे - ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संवर्ग को क्या करना चाहिए था ?

       प्रदेश के ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) जो जिला बोर्ड की सेवाओं में आता था, एवं संख्या में बहुत ही कम जो 1952 से 100 से लेकर 2400 पदो तक की ही संख्या में था। अपनी देयनीय स्थिति को दृष्टिगत रखकर शासन की दमन्ता तक एवं शोषण की नीति से छुटकारा पाने के लिए कुछ कर्मठ, जुझारू, विचारक साथियों ने एक संगठन बनाने का तय किया। परिणाम यह रहा कि 1952 से 1965 तक पूरे प्रदेश के ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संगठित नहीं हो सके। उदयपुर डिवीजन, जयपुर डिवीजन, जोधपुर, कोटा स्तर पर, मेवाड़, मारवाड़ इत्यादि नामों से संगठित होने के प्रयास हुये। संगठन बने मगर राज्य स्तरीय संगठन नहीं बन पाया। दोस्तो, कहावत है कि जब आर्थिक, सामाजिक, असमानता के साथ दमन, शोषण बढ़ता है तो कुर्बानी के लिए किसी को आना ही पड़ता है। इन्ही हालात ने जन्म दिया राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ को |

       मैं, आपको अवगत कराना चाहता हूं कि संगठन बनाने एवं नेतृत्व प्रदान करने में सर्वप्रथम आहूति दी। उनमें भीलवाड़ा को साथी भंवर जी थे। उनके सहयोगी नीति एवं संगठन के सशक्त बनाने में पूर्ण सम्पर्ण किया। साथी फतेहचन्दजी महात्मा, जो अजमेर जिले से थे कोटा के जगदीश सिंह जी हाडा, नागौर से साथी रामकिशनजी पवार, गंगानगर से भागीरथ जी, बून्दी से श्री सोरभ बिहारी, जयपुर से सीताराम शर्मा, भरतपुर से मुरारीलाल सक्सेना समेत इस संगठन को खडा करने के लिए दधीची बलिदान किया जिसके परिणामस्वरूप अब संगठन विशाल वट वृक्ष के रूप 46 वर्षो तक एकजुटता से खडा रह कर कर्मचारी जगत कि अद्वितीय मिसाल बन गया है।

      साथियों, मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि आपात्काल के दौरान संगठन कुछ कमजोर अन्य संगठनों/राजनैतिक दलो/सामाजिक संगठनो की भाॅति हुआ। परन्तु संगठन के पुरोधा भाईसाहब श्री सीताराम जी ने इस संगठन को बल प्रदान किया व आपात्काल में राजनैतिक कारणों से सेवा से पृथक किये गये 2900 राज्य कर्मियों की बहाली हेतु महासंघ का कुशल नेतृत्व कर एक आंदोलन खडा किया व इन कार्मिकों को बहाल करवाया।

      साथियों ज्ञात रहे कि संगठन के नेतृत्वकर्ता हमारे वरिष्ठ साथिगण श्री फतेहचन्द महात्मा कर्मचारी महासंघ में संयुक्त मंत्री व श्री सीताराम शर्मा महामंत्री/सभापति के रूप में कार्य कर कर्मचारी जगत में अद्वितीय छाप छोड़ी, साथ ही अखिल भारतीय ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) ग्रामसेविका महासंघ में श्री सीताराम शर्मा वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रहे है। ऑल इण्डिया स्टेट गारमेन्ट एप्लाई फेडरेशन के सेन्ट्रल जोन के सचिव भी श्री सीताराम शर्मा रहे है।

      साथियों वर्ष 1998 में राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ के द्वारा स्टेच्यू सर्किल जयपुर पर श्री सत्यनारायण शर्मा प्रदेश मंत्री व पुरोधा साथी श्री लक्ष्मणराम महला प्रदेश अध्यक्ष द्वारा आमरण अनशन किया गया। जो कि कर्मचारी जगत में अद्वितीय था। साथियों यहां में आपका ध्यान आकर्षट करना चाहूंगा कि राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री काल में इसी संगठन ने विधानसभा के समक्ष 2002 में विशाल प्रदर्शन किया। जिस पर सरकार ने लाठी चार्ज करवाया व उसी दिन संगठन की मांगों को स्वीकार करने की घोषणा मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में की गयी। श्री चौधरी इस वक्त में प्रदेश अध्यक्ष थे। ध्यान हरे कि सरकार के इसी कार्यकाल में आम कर्मचारी जगत की 64 दिन की हड़ताल को विफल किया था जिसका वेतन आज तक प्राप्त नहीं हुआ। परन्तु इस संगठन शक्ति ने इस सरकार कार्यकाल में भी अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी।



      वर्ष 2004 में खाटूश्यामजी सीकर में सम्पन्न चुनावों के बाद संगठन की बागडोर युवा हाथों को सौंपी गई जिसमें श्री ताराचन्द गुर्जर व श्री सोहनलाल डारा के रूप में नवीन नेतृत्व प्रकट हुआ। जिनके नेतृत्व में अनेकों सम्मेलन, पड़ाव व धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम हुए। जिसके परिणामस्वरूप 589 पंचायत चुंगी कार्मिक/ सहायक सचिवों को सेवा में नियमित किया गया व वर्षो पुरानी चयनित वेतनमान की मांग का निस्तारण भी 12.6.2008 से हुआ। नियुक्ति दिनांक से चयन वेतनमान के आदेश भी हुए। इसी समय युवा महामंत्री श्री सोहनलाल डारा ने जयपुर की बड़ी चौपड़ पर महासंघ के द्वारा आयोजित आमरण अनशन कार्यक्रम में लगातार छः दिन तक अनशन कर सम्पूर्ण कर्मचारी जगत में राजस्थान ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ का नाम रोशन किया। साथ ही ध्यान रहे कि 02 अक्टुबर 1959 को जिस पवित्र स्थल से राजस्थान में पंचायतीराज की घोषणा प. जवाहर लाल नेहरू ने की थी उसी स्थान को राजस्थान के राजनेताओं व पंचायतराज प्रतिनिधियों द्वारा भूला दिया गया था। परन्तु युवातुर्क नेता महामंत्री श्री डारा कि कल्पना ने उस स्थान पर पंचायतराज स्थापना दिवस ग्राम विकास अधिकारी ( ग्रामसेवक ) संघ द्वारा मनाकर एक अद्वितीय पहल की जिसके फलस्वरूप राजस्थान सरकार उक्त स्थान के विकास के लिए पहली बार अत्यधिक धन राशि का आवंटन कर स्थान को संरक्षित घोषित कर विकास किया।

      साथियों वर्ष जनवरी 2009 से मुझको जो दायित्व संगठन के युवा साथी श्री सोहनलाला डारा के साथ सौंपा गया है व युवा साथियों की एक प्रदेश कार्यकारिणी का गठन हुआ जिसका मूल्याकंन में आप सब के ऊपर छोड़ता हूं साथ ही आप सबसे एकता व संगठन के इतिहास के अनुरूप इसका मान-सम्मान बनाए रखने की अपील करते हुए संगठन के निर्माण से आज तक की गतिविधि का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता हूं ताकि इतिहास से आप साथी जानकार होकर अपने आप संगठन हीत में कार्य कर सके।
!! जय हिन्द !!

शुभेच्छु       
महावीर प्रसाद शर्मा
(प्रदेश अध्यक्ष)
9829092714